Thursday, August 27, 2009

चला चल

जीवन रस पीये जा, नामुमकिन किए जा,
प्रगति के पथ पर, अविरल तू बढ़े जा।

नामुमकिन में भी मुमकिन है, यह जानना है तुझे,
अंकुरित होती क्षमताओं को, पहचानना है तुझे,
जीवन पथ की शुरुआत से, आकाँक्षाओं के क्षितिज पर पहुचना है तुझे।

राहें नई है, मुश्किल है, तो क्या हुआ,
उन्हें पार कर ही तो मंजिल मिलेंगी,
इस असंतुष्ट ज़िन्दगी में, तभी संतुष्टि मिलेंगी।

छा जाओ विश्व पटल पर, यह नभ तुम्हारा है,
करो ख़ुद कर विश्वास, आने वाला कल तुम्हारा है।
नज़रों मैं मंजिल हो, कुछ कर गुजरने का जज्बा हो,
तो इस कुरुक्षेत्र के अर्जुन तुम ही कहलाओगे,
आज नही तो कल अपनी मंजिल को जरूर पाओगे।


P.S.- I wrote this poem a long ago, even I don't remember when. While packing today, I came across it...

2 comments:

Priyanka said...

Very inspiring. Its good to read something from you, in HINDI. :) Keep writing.

anoop... said...

thanks:)